
नई दिल्ली। अपने देश में मकर संक्रांति के पर्व बड़ी धूमधान से मनाया जाता है। यह हर साल 14 जनवरी या 15 जनवरी को आता है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है यानी कि पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। इसीलिए इस संक्रांति को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। राशि बदलने के साथ ही मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है।
खरमास की समाप्ति और शुभ कार्यों की शुरुआत
वहीं, मकर संक्रांति के दिन से ही खरमास की समाप्ति और शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। मकर संक्रांति में सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण तक का सफर महत्व रखता है। मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण काल में ही शुभ कार्य किए जाते हैं। मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गुड़ और तिल लगाकर नर्मदा में स्नान करना लाभदायी होता है। इसके बाद दान संक्रांति में गुड़ए तेलए कंबलए फलए छाता आदि दान करने से लाभ मिलता है और पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
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मकर संक्रांति के पर्व को विभिन्न राज्यों में अलग- अलग नाम से मनाया जाता है....
उत्तर प्रदेश-
मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। सूर्य की पूजा की जाती है। चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है।
गुजरात और राजस्थान-
उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है।
आंध्रप्रदेश-
संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है।
तमिलनाडु-
किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है। घी में दाल.चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है।
महाराष्ट्र-
लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं।
पश्चिम बंगाल-
हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है।
असम-
भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।
Source Makar Sankranti 2021: क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति, जानें महत्व
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