
नई दिल्ली। उत्तराखंड के हरिद्वार में कुंभ मेले की तैयारियां पूरे चरम पर हैं। आपको बतादें 83 साल बाद ऐसा संजोग बना है जब 12 की जगह 11 साल के अंतराल में कुंभ मेला (Haridwar Kumbh mela 2021) आयोजित होने जा रहा है। कुंभ मेले को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना गया है। कुंभ मेला हर 12 वर्ष में देश के चार स्थानों पर होता है। ये चारों स्थान किसी ना किसी पवित्र नदी के तट पर स्थित है। हरिद्वार में गंगा के किनारे, उज्जैन में शिप्रा के तट पर, नासिक में गोदावरी के किनारे तो इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम पर जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब बृहस्पति का कुंभ राशि में और सूर्य का मेष राशि में प्रवेश होता है तभी कुंभ मेले का आयोजन होता है। जानकार प्रयाग के कुंभ को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। कुंभ का तात्पर्य है- कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का भी यही चिह्न है, कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता अमृत मंथन से जुड़ी हुई है।
जब समुद्र मंथन हुआ उस समय देवताओं व राक्षसों के बीच समुद्र मंथन से निकले रत्नों को बांटने का निर्णय हुआ। समुद्र के मंथन से जो सबसे मूल्यवान वस्तु निकली वह था अमृत, अमृत पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच जमकर संघर्ष हुआ।
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संघर्ष के दौरान अमृत को असुरों से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अमृत कलश को अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। संघर्ष के दौरान असुरों ने जब गरुड़ से अमृत पात्र छीनने की कोशिश की तो उस पात्र से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं। तभी से प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल में चारों स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजित किया जाने लगा।
अमृत के लिए देव-दानवों के बीच 12 दिन तक 12 स्थानों में युद्ध चला, संघर्ष के दौरान सभी 12 स्थानों पर सुधा कुंभ से अमृत छलका ऐसा माना जाता है कि उन 12 स्थानों में से चार स्थल मृत्युलोक में हैं, और आठ स्थल मृत्युलोक में ना होकर स्वर्ग आदि जगहों पर हैं। इंसानों के 12 वर्ष का मान देवताओं के बारह दिन से है। यही कारण है कि 12वें वर्ष ही प्रत्येक स्थान पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है।
Source Kumbh mela 2021: हर 12 साल में क्यों लगता है कुंभ मेला? जानें इसके पीछे का रहस्य
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